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दशलक्षण का दसवां पर्व – उत्तम

🙏 जय जिनेंद्र 🙏 आज का दिन उत्तम ब्रह्मचर्य  के रूप में मनाया जाता है Day 10: Uttam Brahmacharya This day celebrates Uttam Brahmacharya meaning Supreme Chastity ब्रह्मचर्य – सद्गुणों का अभ्यास करना और अपने को पवित्र रखना। Shloka: शील-बाढ नौ राख, ब्रह्म-भाव अन्तर लखो । करि दोनों अभिलाख, करहु सफ़ल नरभव सदा ॥ उत्तम ब्रह्मचर्य …

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दशलक्षण का नौवां पर्व – उत्तम आकिंचन

🙏 जय जिनेंद्र 🙏 आज का दिन उत्तम आकिंचन के रूप में मनाया जाता है आकिंचन – किसी भी चीज में ममता न रखना। अपरिग्रह स्वीकार करना। Day 9: Uttam Akinchan This day celebrates Uttam Akinchan meaning Supreme Non Attachment Shloka: परिग्रह चौबिस भेद, त्याग करैं मुनिराज जी । तिसना भाव उछेद, घटती जान घटाइए ॥ …

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दशलक्षण का आठवाँ पर्व – उत्तम त्याग

Day 8: Uttam Tyaag This day celebrates Uttam Tyaag meaning Supreme Renunciation त्याग– पात्र को ज्ञान, अभय, आहार, औषधि आदि सद्वस्तु देना। *Shloka* दान चार परकार, चार सन्घ को दीजिए । धन बिजुली उनहार, नर-भव लाहो लीजिए ॥ उत्तम त्याग कह्यो जग सारा, औषध शास्त्र अभय आहारा । निहचै राग-द्वेष निरवारै, ग्याता दोनों दान संभारै ॥ …

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दशलक्षण का सातवाँ पर्व – उत्तम तप

Day 7:  Uttam Tap This day celebrates Uttam Tap meaning Supreme Austerity. तप– मलीन वृत्तियों को दूर करने के लिए जो बल चाहिए, उसके लिए तपस्या करना। Shloka: तप चाहें सुरराय, करम-शिखर को वज्र है । द्वादशविधि सुखदाय, क्यों न करै निज सकति सम ॥ उत्तम तप सबमाहिं बखाना, करम शैल को वज्र-समाना । बस्यो अनादि-निगोद …

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दशलक्षण का छठा पर्व – उत्तम संयम

Day 6 :  Uttam Sanyam This day celebrates Uttam Sanyam meaning Supreme Self-control संयम– मन, वचन और शरीर को काबू में रखना। Shloka: काय छहों प्रतिपाल, पंचेंद्री मन वश करो । सन्जम रतन संभाल, विषय चोर बहु फ़िरत हैं ॥ उत्तम सन्जम गहु मन मेरे, भव-भव के भांजै अघ तेरे । सुरग-नरक-पशुगति में नाहीं, आलस-हरन करन-सुख ठाहीं …

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दशलक्षण का पांचवां पर्व – उत्तम र्शौच

Day 5 : Uttam Shauch This day celebrates Uttam Shauch meaning Supreme Contentment/Purity शौच– मन में किसी भी तरह का लोभ न रखना। आसक्ति न रखना। शरीर की भी नहीं। Shloka: धरि हिरदै सन्तोष, करहु तपस्या देह सों । शौच सदा निर्दोष, धरम बढो संसार में ॥ उत्तम शौच सर्व जग जाना, लोभ पाप को बाप …

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